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Channel: राजू बिन्दास! ( Raju Bindas..! )
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भौकाली ब्लॉगर

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कालेज डेज में हम लोगों को नसीहत दी जाती थी कि खाली, बीए-एमए करने से कुछ नही होगा. कुछ बनना है तो स्पेशलाइज्ड फील्ड चुनो. इसी तरह जर्नलिस्टों की जमात में घुसने पर सीनियर्स ने कहा आगे बढऩा है तो स्पेशलाइज्ड फील्ड पकड़ो. उस समय एड्स के बारे में कम ही लोग जानते थो सो इस पर खूब ज्ञान बघारा. उसके बाद तो साइंस का ऐसा चस्का लगा कि यूनिवर्स तक खंगाल डाला. कुछ साल स्पोट्र्स पर भी हाथ घुमाया. यानी स्पेशलाइज्ड फील्ड में किस्मत आजमाई. अपना तो नहीं मालुम लेकिन दूसरे कई स्पेशलाइज्ड जर्नलिस्टों का गजब का भौकाल है. सो ब्लॉगर अगर स्पेशलाइज्ड फील्ड का है तो उसका भौकाल होना स्वाभाविक है. आज थोड़ी चर्चा ऐसे ब्लॉगर्स पर.
चौथे खम्भे में सबसे पहले बात तीसरे खम्भे की. यानी हिन्दी ब्लॉग का एक मजबूत खम्भा. इस मजबूत ब्लॉग का नाम भी इत्तफाक से तीसरा खम्भा है. इस खम्भे के रचयिता हैं दिनेश राय द्विवेदी. पेशे से वकील दिनेश राय कोटा के कोर्ट में पाए जाते हैं लेकिन साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में भी इनकी नीव बहुत मजबूत है. लेकिन पेशे के अनुरूप इनका स्पेशलाइजेशन कानून की फील्ड में है. न्याय व्यवस्था के ज्वलंत मुद्दों को बड़ी ही सहज, सरल भाषा में उठाने में उन्हें महारत हासिल है. वकील जब ब्लॉगर हो तो वो सोशल वर्कर भी बन जाता है. तभी उनकी पोस्ट में ढेर सारे लोग, छोटी-छोटी कानूनी बातों पर उनसे सलाह लेना नहीं भूलते. और इसमें दिनेश दरियादिल हैं.
आइए अब राजस्थान से झारखंड चलें. यहां स्टील सिटी बोकारो में संगीता पुरी के संगीत का आनंद लेते हैं. संगीता पुरी ना तो गीतकार हैं ना संगीतकार. अर्थशास्त्र पढ़ कर वो नक्षत्रशास्त्र की टीचर बन बैठीं. उन्होंने ज्योतिषशास्त्र को बड़े तर्कसंगत और वैज्ञानिक ढंग से लेागों के सामने रखने की कोशिश की है. उनके ब्लॉग का नाम है गत्यात्मक चिंतन. उनकी पोस्टों में ईमानदारी और गति दोनों दिखती है. वो ‘बाबा’ तो नहीं हैं लेकिन अपने ब्लॉग फालोअर्स को निशुल्क ज्योतिष सलाह और भाग्य बांचने में किसी साध्वी से कम नही हैं. हां, संगीता पुरी की व्यस्त ‘नक्षत्रशाला’ में अपनी ग्रहदशा जाननी हो तो अपने कृपया लाइन से आएं और धैर्य रखें.
कानून हो गया, ज्योतिष हो गया. अब शब्दों के अजायबघर की सैर करते हैं. इसके लिए आपको अजित वडनेरकर के ब्लॉग ‘शब्दों का सफर’ का सफर करना होगा. अजित शब्दों के जादूगर हैं और उनके अजायबघर में एक से एक बिंदास, खड़ूस, राप्चिक और झंडू शब्दों की जो व्याख्या यहां मिलेगी वो दूसरे शब्दकोष में कहां. इसी तरह शरद कोकास का ब्लॉग ‘ना जादू ना टोना’ अंधविश्वास, भ्रांतियों और जादू-टोना करने वाले ओझा गुनिया का धंधा चौपट करने पर तुला है. आप ब्लॉगरों में जैकाल (सियार नहीं, जैक ऑफ ऑल) हैं तो कुछ नही होने वाला. कद्दू तोरई और बकरी पर लिखने से कुछ नहीं होगा. कुछ स्पेशल करिए और बनिए भौकाली.

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